सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर उपराष्ट्रपति धनखड़ की प्रतिक्रिया: 'राष्ट्रपति को आदेश देना लोकतंत्र के खिलाफ'
नई दिल्ली, 17 अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट की एक हालिया टिप्पणी पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। 8 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति को आदेश दिया था कि वे तीन महीने के भीतर राज्यपालों द्वारा भेजे गए लंबित विधेयकों पर फैसला लें। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश पर उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “हमने भारत में कभी ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यकारी कार्य करेंगे, और 'सुपर संसद' के रूप में काम करेंगे। यह संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है।”
धनखड़ ने सवाल किया, "क्या अब हम उस दिशा में बढ़ रहे हैं, जहां न्यायपालिका अपनी सीमाओं से बाहर जा रही है और कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों को भी अपने हाथ में ले रही है?" इस टिप्पणी के बाद, कई राजनीतिक और कानूनी विशेषज्ञों ने अपनी चिंता व्यक्त की है, जबकि कुछ विरोधी दलों ने इसे संविधान की अवहेलना और लोकतांत्रिक प्रणाली के खिलाफ बताया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा, "राष्ट्रपति को निर्देश देना गलत है, संविधान सर्वोच्च है, न कि संसद।" सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि राष्ट्रपति को विधेयकों पर समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है, और यह मुद्दा भारतीय संसद और न्यायपालिका के बीच संतुलन की चर्चा का केंद्र बन चुका है। इस टिप्पणी पर उपराष्ट्रपति का कहना है कि संविधान में सत्ता का स्पष्ट पृथक्करण है, और किसी भी शाखा को दूसरे की भूमिका में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन और शक्तियों का पृथक्करण भारतीय लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है, और इस पर उठे सवालों ने फिर से उन संविधानिक विवादों को ताजा कर दिया है जो देश के सर्वोच्च संवैधानिक सिद्धांतों को प्रभावित कर सकते हैं।
धनखड़ ने सवाल किया, "क्या अब हम उस दिशा में बढ़ रहे हैं, जहां न्यायपालिका अपनी सीमाओं से बाहर जा रही है और कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों को भी अपने हाथ में ले रही है?" इस टिप्पणी के बाद, कई राजनीतिक और कानूनी विशेषज्ञों ने अपनी चिंता व्यक्त की है, जबकि कुछ विरोधी दलों ने इसे संविधान की अवहेलना और लोकतांत्रिक प्रणाली के खिलाफ बताया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा, "राष्ट्रपति को निर्देश देना गलत है, संविधान सर्वोच्च है, न कि संसद।" सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि राष्ट्रपति को विधेयकों पर समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है, और यह मुद्दा भारतीय संसद और न्यायपालिका के बीच संतुलन की चर्चा का केंद्र बन चुका है। इस टिप्पणी पर उपराष्ट्रपति का कहना है कि संविधान में सत्ता का स्पष्ट पृथक्करण है, और किसी भी शाखा को दूसरे की भूमिका में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन और शक्तियों का पृथक्करण भारतीय लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है, और इस पर उठे सवालों ने फिर से उन संविधानिक विवादों को ताजा कर दिया है जो देश के सर्वोच्च संवैधानिक सिद्धांतों को प्रभावित कर सकते हैं।