अल्पमानदेय कर्मियों की जुबानी
आउटसोर्सिंग नौकरी (उ0प्र0)
🔴 क्या आप जानते हैं कि सरकारी नीतियों की धांधली और ठेकेदारी प्रथा ने लाखों कर्मचारियों और उनके परिवारों को जीवित मृत्यु के कगार पर ला खड़ा किया है?
आजादी के 75 वर्ष बाद भी भारत के मेहनतकश कर्मचारी गुलामों से बदतर जीवन जीने पर मजबूर हैं। न अंग्रेज बचे, न मुग़ल, लेकिन उनकी तानाशाही व्यवस्थाएँ आज भी जिंदा हैं—बस चेहरे बदल गए हैं। पहले ब्रिटिश सरकार भारतीयों का खून चूसती थी, आज सरकारी ठेकेदार और भ्रष्ट अधिकारी वही खेल खेल रहे हैं। कर्मचारियों के श्रम का गबन कर, उनके सपनों को बेरहमी से कुचला जा रहा है।
🔎 सरकार और ठेकेदारों की मिलीभगत: ठेकेदारी प्रथा का षड्यंत्र
सरकार एक तरफ ‘विकास’ का नारा देती है, दूसरी तरफ ठेकेदारी प्रथा के जरिए 30 लाख से अधिक कर्मचारियों को बंधुआ मजदूरों की तरह इस्तेमाल कर रही है। सरकारी विभागों में स्थायी नियुक्तियाँ खत्म कर दी गई हैं, और इनके स्थान पर आउटसोर्सिंग का कुचक्र रच दिया गया है। नतीजा?
🔸 10-15 वर्षों तक सेवाएँ देने के बावजूद ठेके पर काम करने की मजबूरी।
🔸 न्यूनतम वेतन, कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं, और भविष्य अंधकारमय।
🔸 कर्मचारियों को 3rd पार्टी के हवाले कर ठेकेदारों को खुली लूट की छूट।
🔸 EPF, ESI, और वेतन का गबन कर कर्मचारियों की मेहनत की कमाई हड़पी जा रही है।
🔸 रोज़गार की स्थिरता खत्म कर परिवारों की आर्थिक कमर तोड़ दी गई है।
*सरकार का प्रशासनिक खेल इतना जटिल और धूर्ततापूर्ण है कि IAS अधिकारी और श्रम मंत्रालय भी इसे सुलझाने में असमर्थ नजर आते हैं।* बल्कि, *इन्हीं अफसरों और ठेकेदारों की मिलीभगत से लाखों कर्मचारियों का शोषण हो रहा है।*
🩸 कर्मचारियों की अकाल मृत्यु का जिम्मेदार कौन?
👉 आज मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी, बढ़ती महंगाई और शोषण के कारण कर्मचारियों की औसत उम्र घटकर 60-65 वर्ष रह गई है।
👉 रोज़गार की अनिश्चितता और न्यूनतम वेतन पर जिंदगी गुजर-बसर करने के चलते परिवारों में अशांति बढ़ी है।
👉 आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी-पुत्र—सभी इस शोषण के शिकार हैं।
👉 हजारों कर्मचारी मानसिक अवसाद में आत्महत्या करने पर मजबूर हो चुके हैं।
🔴 क्या यह संगठित हत्या नहीं?
अगर एक ठेकेदार कर्मचारियों की मेहनत की कमाई हड़पकर उन्हें न्यूनतम वेतन से भी वंचित करता है, तो क्या वह एक आर्थिक हत्यारा नहीं?
अगर सरकार ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा देकर लाखों कर्मचारियों की रोजी-रोटी छीनती है, तो क्या वह जनसंहार के लिए दोषी नहीं?
⚖️ कानूनी कार्यवाही: भ्रष्टाचारियों पर मुकदमा चलाया जाए
संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के अनुसार, यह स्पष्ट रूप से एक गैरकानूनी शोषण है।* ठेकेदारों और सरकार की मिलीभगत *IPC की कई धाराओं के तहत आपराधिक अपराध की श्रेणी में आती है:*
🔹 IPC धारा 304A:* जानबूझकर लापरवाही से कर्मचारी और उनके परिवार की जान जोखिम में डालना।
🔹 IPC धारा 120B:* षड्यंत्र रचकर वेतन गबन और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम का उल्लंघन।
🔹 IPC धारा 420:* सरकारी फंड का दुरुपयोग और वेतन घोटाला।
🔹 श्रम कानूनों का उल्लंघन:* ठेकेदारी के जरिए कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन।
👉 क्या कर्मचारी संगठित होकर FIR दर्ज करवाने का साहस दिखाएँगे?
👉 क्या कोई एडवोकेट इस ऐतिहासिक लड़ाई में मजदूरों का समर्थन करेगा?
🗳️ भ्रष्ट नेताओं को वोट देना मतलब अपने हत्यारों को सत्ता सौंपना
हर चुनाव में सड़कों पर घूमने वाले दलाल नेता, ठेकेदारों के इशारे पर कर्मचारियों से वोट मांगने आ जाते हैं। और कर्मचारी अपनी ही हत्या का परवाना लिख देते हैं!
🔸 क्या हम भूल गए कि यही भ्रष्ट नेता हमारी नौकरी, हमारी कमाई और हमारे भविष्य के हत्यारे हैं?
🔸 क्या हम इतने कमजोर हो गए कि हम अन्याय सहने के आदी बन चुके हैं?
🔸 क्या नोटा (NOTA) का उपयोग कर, हम इन भ्रष्टाचारियों को सबक नहीं सिखा सकते?
🔥 एकता ही शक्ति है – जनांदोलन ही समाधान है
जब तक कर्मचारी और उनके परिवार संगठित नहीं होंगे, तब तक यह गुलामी बनी रहेगी। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज होते तो क्या वे यह अन्याय सहते?
✔ संगठित हों, आवाज उठाएँ।
✔ सरकारी ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ कानूनी लड़ाई छेड़ें।
✔ भ्रष्ट नेताओं को वोट न देकर उनका बहिष्कार करें।
✔ राजनीतिक और प्रशासनिक षड्यंत्रों को उजागर करें।
क्रांति आराम से नहीं आती, यह संघर्ष मांगती है।
👉 अगर हमने आज चुप्पी साध ली, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें कायर कहेंगी।
जय हिंद, जय श्रमिक क्रांति!